jamshedpur-सिख राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों से करें टिकट की मांग- कुलविंदर सिंहknow more about it.
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जमशेदपुर। राष्ट्रीय सनातन सिख सभा के राष्ट्रीय संयोजक अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने कहा है कि भारतीय संविधान और भारत का जन प्रतिनिधित्व अधिनियम किसी को भी चुनाव मैदान में उतरने से रोकता नहीं है। बशर्ते भारतीय नागरिक पागल, सजायाफ्ता अथवा दिवालिया नहीं हो।
कुलविंदर सिंह के अनुसार भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल सिखों को अपना उम्मीदवार झारखंड खासकर जमशेदपुर में बना चुके हैं। सरदार इंदर सिंह नामधारी और सरदार बलदेव सिंह को छोड़ दें तो अन्य सभी सिख प्रत्याशियों की जमानत जप्त हो गई। अपवाद 1971 चुनाव में केवल स्वर्ण सिंह रहे जिन्होंने दिग्गज नेता केदार दास को हराया।
कुलविंदर सिंह ने उन सामाजिक संगठनों को आड़े हाथ लेते हुए कहा जो किसी सिख को उम्मीदवार बनाने की मांग विभिन्न राजनीतिक दल से मात्र कोरी बयानबाजी कर कर रहे हैं। इन्हें तो यह मांग करना चाहिए कि कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने प्रतिबद्ध, ईमानदार, सिख कैडर को टिकट देने का काम करे। सिख समाज सभी समाज को साथ लेकर उसे जीताने का काम करेगा। जमशेदपुर कॉस्मापॉलिटन टाउन है और यहां पर किसी एक प्रांत के नाम पर ना तो किसी व्यक्ति को टिकट मिलेगा और ना ही टिकट पाने वाला चुनाव में जीत सकेगा।
जो उम्मीदवारी के नाम पर सिख सम्मेलन एवं सेमिनार करने की बात कर रहे हैं मैं उन्हें सुझाव देना चाहता हूं कि समाज में कई समस्याएं हैं, जिनका मिलकर समाधान किया जाना जरूरी है। यदि फिर भी शौक है तो निर्दलीय चुनाव लड़ लेना चाहिए।
कुलविंदर सिंह के अनुसार जब हम बिरादरी से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं तो हम सर्व सिख एकता की बात कैसे कर सकते हैं?
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पिछले लोकसभा चुनाव में तो जमशेदपुर के लोगों ने देखा है कि एक भाई यूपीए के लिए जान लगाए हुए हैं तो उसका परिवार का सदस्य एनडीए प्रत्याशी के लिए भिड़ा हुआ है। यहां मकसद अपने व्यवसाय को चमकाना है और अपनी दुकानदारी चलानी है। समाज की चिंता होती तो अभी तक सम्मेलन कर चुके होते और उसमें एक तरफा फैसला किसी एक राजनीतिक दल के सिख नेता अथवा अन्य पर सहमति हो गई होती और पूरा समाज उसके पीछे खड़ा होता।
वही कुलविंदर सिंह ने समाज को सुझाव दिया है कि जो सिख राजनीति करते हैं कम से कम उसका मजाक उड़ाना सार्वजनिक रूप से बंद करें। उसे खुद मान्यता दे तो दूसरे समाज और राजनीतिक दल भी स्वीकार कर लेंगे।
