jamshedpur-इस बार नहीं जगमगाएंगे गुरुद्वारे।श्रीअकाल तख्त के आदेशानुसार 1 नवंबर बंदी छोड़ दिवस पर सिख परिवार घरों में जलाएं घी के दिये-सुरजीत सिंह खुशीपुरी know more about.
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नरसंहार की 40वीं बरसी के मद्देनजर सुरजीत सिंह खुशीपुरी ने जारी किया संदेश
श्रीअकाल तख्त के आदेशानुसार 1 नवंबर बंदी छोड़ दिवस पर सिख परिवार घरों में जलाएं घी के दिये-सुरजीत सिंह खुशीपुरी
जमशेदपुर स्थित टिनप्लेट गुरुद्वारा साहिब के प्रधान सरदार सुरजीत सिंह खुशीपुरी एवं पूर्व प्रधान सरदार गुरचरण सिंह बिल्ला ने संयुक्त रूप से जमशेदपुर के सभी सिख संगत को अपील करते हुए कहा कि इस वर्ष बंदी छोड़ दिवस 1 नवंबर को पड़ रही है। और 1984 में इसी तारिख को राजधानी दिल्ली के अलावा भारत के कई शहरों में सिखों का कत्लेआम किया गया। उन शहीदों की याद में इस वर्ष किसी गुरुद्वारों में और घरों में दीपमाला न करें। बल्कि उन निर्दोष सिखों की याद में घरों में घी के दिये जलाएं जाएं।
ये समाचार आप गौरीशंकर रोड गुरुद्वारा स्त्री सत्संग सभा की प्रधान बीबी इंद्रजीत कौर जी टिम्पी,गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी साक्ची, गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सीतारामडेरा,गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सोनारी,गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी तार कंपनी, गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी मानगो, गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी टिन प्लेट, सेन्ट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी जमशेदपुर, जमशेदपुर ट्रक ट्रेलर एशोसिएशन, सिख विजडम, मोशन ऐजूकेशन जमशेदपुर,दुपट्टा सागर बिस्टुपुर, के सहायता से प्राप्त कर रहे हैं।
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सुरजीत सिंह खुशीपुरी ने बुधवार को जारी संदेश में कहा कि इस साल केवल गोल्डन टेंपल और श्री अकाल तख्त साहिब पर ही बिजली की सजावट की जाएगी। दुनियाभर की सिख संगत को सलाह दी गई है कि वे अपने घरों और गुरुद्वारों में केवल घी के दीये जलाएं और बिजली की सजावट से परहेज करें।
अकाल तख्त साहिब के सचिवालय ने अपने लिखित बयान में उन्होंने 1984 के सिख नरसंहार को याद किया, जो कांग्रेस सरकार के शासन के दौरान हुआ था।
सरदार गुरचरण सिंह बिल्ला ने कहा कि दिल्ली सहित देश के 110 शहरों में सिखों का नरसंहार किया गया और इसे एक सिख नरसंहार के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।
ज्ञानी रघबीर सिंह ने इस घटना को सिख समुदाय के लिए एक गहरे घाव के रूप में याद किया, जो आने वाली पीढिय़ों तक उनके मन में रहेगा। उन्होंने कहा कि 1 नवंबर का दिन बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जो श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के ग्वालियर किले से रिहाई और श्री अमृतसर साहिब आगमन की याद में मनाया जाता है।
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