Religious-मां जगत जननी मां रंकिनी का मनमोहक मंदिर जादूगोड़ा

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DAILY DOSE NEWS

सौरभ कुमार जादूगोड़ा

jadugoda – हाता मुख्य मार्ग पर माँ जगत जननी रंकिनी माँ का मंदिर स्थित है, जादूगोड़ा से 3 किलोमीटर दूर स्थित कपरीघाट में मां रंकिणी का मंदिर है,चांदी की आंखों के साथ सजायी गयी मां की प्रतिमा बेहद प्रभावपूर्ण है। मां की महिमा एवं लोगों की सच्ची श्रद्धा लोगों को यहां खींचकर ले आती है। आप यहां मां की आराधना के लिए या प्रकृति की सुंदरता में डूबने के लिए आ सकते हैं। इसके अलावे माँ रंकिनी मंदिर के सामने स्थित पहाड़ के ऊपर बजरंगबली के प्रतिमा है, रंकिणी मंदिर अत्यंत मनोरम परिदृश्य के बीच स्थित है। स्थानीय स्तर पर यह काफी गहरी आस्था का केंद्र रहा है। आसपास इतनी हरियाली एवं इतनी सुंदरता आपको मिलेगी कि लिखने के लिए शब्द कम पड़ जाए। अगर आप ऊपर पहाड़ चढ़कर उसके बाद नीचे देखेंगे तो प्रकृति का मनोरम दृश्य आपको देखने को मिलेगी

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माता की पूजा करने के लिए यहां प्रत्येक दिन भक्तों की भीड़ लगती है। खासकर मंगलवार, शनिवार को मां रंकिणी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। रंकिणी माता को देवी दुर्गा के एक रूप में पूजा की जाती है। रोज हजारों श्रद्धालु महिला-पुरुषों अपने-अपने कष्ट निवारण के लिए मां की पूजा- अर्चना करते है, रंकिणी मंदिर जिले के प्राचीन और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। लोग लाल कपड़े में सुपाड़ी, नारियल और अक्षत बांध कर टांग देते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब लोगों की मनोकामना पूरी हो जाती है, तो उनके द्वारा बांधे गये कपड़े का बंधन खुद खुल जाता है। गर्भगृह के अंदर कोई देवता नहीं बल्कि एक काला पत्थर है जिसे देवी दुर्गा के रूप में पूजा जाता है।

राजा जगन्नाथ धाल ने रंकिणी माता के मंदिर की स्थापना की थी।

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पुजारी परंपरागत रूप से पास के गांव सहाड़ा के भूमिज जाति से होते हैं। वर्तमान में मंदिर प्रांगण के मुख्य पुजारी का नाम अनिल सिंह है। इस मंदिर के इतिहास और उत्पत्ति के बारे में बहुत कम जानकारियां है, बहुत कम लोगों को पता है, जैसा कि मैंने पढ़ा है और कुछ जानकारियां मिली है। अगर आप बहुत पढ़ेंगे, बहुत खोज करेंगे तो इस मंदिर से जुड़ी नरबलि के किस्से के बारे में आपको सुनने को मिलेगा। ऐसा माना जाता है कि धालभूमगढ़ के राजा, राजा जगन्नाथ धाल ने रंकिणी माता के मंदिर की स्थापना की थी। एक अन्य कहानी कहती है कि प्राचीन काल में इस देवी की स्थापना एक स्थानीय आदिवासी व्यक्ति ने की थी,

जब उसने स्पष्ट रूप से एक आभूषणों से सजी छोटी लड़की को जंगल में गायब होते देखा था। उसी रात देवी उनके सपनों में प्रकट हुईं और उन्हें मंदिर स्थापित करने और पूजा शुरू करने का निर्देश दिया। मंदिर से जुड़ी अनकही बहुत सारी कहानियां है। अनेकों अनेक रोचक किस्से है,वर्तमान में जो मंदिर है वह लगभग 73 वर्ष पुराना है, जिसे 1950 या उसके बाद बनाया गया था। मंदिर का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट का गठन 1954 में किया गया था। माँ जगत जननी रंकिनी माँ के आशिर्वाद आप हम सब पर बना रहे, तो फिर आप कब दर्शन के लिए जा रहे है ?

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jamshedpur-सीतारामडेरा गुरुद्वारा साहिब में गुरमत समागम आज।


jamshedpur-सीजीपीसी के प्रधान भगवान सिंह के नाम लिखे गए पत्र.


jamshedpur-1984 में शहीद हुए लोगों की शहादत को समर्पित मीठे शरबत की शबील लगाई गई.

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जमशेदपुर: शहर के शहीद बाबा दीपसिंह जी के पावन स्थान सीतारामडेरा गुरुद्वारा साहिब में आज शाम रहिरास साहिब के पावन पाठ के उपरांत गुरमत समागम का आयोजन किया जाएगा।
जिसमें पंजाब के ज्ञानी अमृत पाल सिंह विशेष रूप से शिरकत करेंगे।
इसकी जानकारी गुरुद्वारा कमेटी के महासचिव सरदार अविनाश सिंह खालसा ने दी।
इस मौके पर गुरुद्वारा कमेटी के समस्त पदाधिकारियों ने संगत से अपील करते हुए कहा कि गुरमत समागम में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर अपना जीवन सफल करें।

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