parkash parv-श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के प्रकाश पर्व 4 सितंबर पर विशेष– special for all sangat.
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बाणी गुरु गुरु है बाणी विचि बाणी अंम्रित सारे॥
गुरु कहै सेवकु जनु मानै परतखि गुरु निसतारे॥
अर्थात वाणी गुरु है और गुरु ही वाणी है, गुरु और वाणी में कोई अंतर नही है, गुरु की वाणी ही गुरु है और गुरुवाणी में सारे अमृत मौजूद है।
संपूर्ण सृष्टि के गुरु ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का संपादन सिख धर्म के संस्थापक प्रथम गुरु, ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के समय से ही प्रारंभ हो चुका था। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने समकालीन सभी भक्तों, संतों और विद्वानों की वाणी का संकलन प्रारंभ किया। प्रमुख रूप से इन वाणीयों में एक अकाल पुरख की महिमा का वर्णन किया गया है। इस सारे बहुमूल्य खजाने की विरासत को आप जी ने दूसरे गुरु ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ को सौंपी थी। ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ ने इन वाणीयों की छोटी–छोटी पुस्तकों के रूप में प्रचार–प्रसार किया। इस धर्म प्रचार के साथ-साथ ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की वाणी और ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ द्वारा रचित वाणीयों का संकलन तीसरे गुरु ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ को विरासत के रूप में मिला। इस तरह से इन वाणीयों का संकलन चौथे गुरु ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ के कार्यकाल से होते हुए पांचवें गुरु, ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ को विरासत में मिला। इन सभी वाणीयों की प्रमाणिकता ठीक रहे और उसमें कोई मिलावट ना हो इसलिए पांचवें गुरु ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने भाई ‘गुरदास जी’ की सहायता लेकर इन सारी वाणीयों को क्रमानुसार संकलित कर ‘श्री आदि ग्रंथ’ की स्थापना की थी।
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इस स्थापना दिवस को ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पहले प्रकाश पर्व के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है और इसी दिन ‘श्री हरमंदिर साहिब जी’ अमृतसर में ‘श्री आदि ग्रंथ’ को सुशोभित किया गया था एवं उस समय में बाबा बुड्डा जी को प्रथम हेड ग्रंथी के रूप में मनोनीत किया गया था। ‘श्री आदि ग्रंथ’ की वाणीयों का प्रचार–प्रसार कर समाज में अज्ञानता को दूर कर, ज्ञान का प्रकाश इन वाणीयों से किया जाता था।
‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के द्वारा स्थापित ‘सबद् गुरु के सिद्धांत’ को इस महान ग्रंथ में विशेष सम्मान दिया। गुरु पातशाह जी ने ‘गुरु ग्रंथ जी मानिओ प्रगट गुरां की देह’ का संदेश दिया। सिख दर्शन में वाणी को गुरु और ग्रंथ को उस अकाल पुरख का स्वरूप माना गया है। ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने जब ‘आदिग्रंथ’ का संपादन किया तो ‘पोथी परमेसर का थान’ कह कर वाणी को पोथी का सम्मान दिया और ‘आदिग्रंथ’ को श्री हरिमंदिर साहिब, अमृतसर में आदर सहित सुशोभित किया। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने भी अपनी वाणी को ख़सम (परमात्मा) के आदेश से प्राप्त वाणी कहा है और ‘सबद्’ को ‘गुरु’ की उपमा प्रदान की है। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ एकमात्र ऐसे ग्रंथ है, जिनका प्रतिदिन नियमानुसार ‘प्रकाश’ और ‘सुखासन’ किया जाता है। ‘प्रकाश’ से आशय प्रातः कालीन पाठ के लिए ग्रंथ का वस्त्र आवरण (रुमाला साहिब) हटाकर विधि पूर्वक सम्मान से खोला जाता है और ‘सुखासन’ से आशय रात्रि–विश्राम के लिए ग्रंथ को वस्त्र–आवरण में (रुमाला साहिब) में रखकर विधि पूर्वक, सम्मान से, सर्व सुविधा युक्त निर्धारित कक्ष में विश्राम कराना है। एक जीवित गुरु की भांति ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के श्रद्धापूर्वक दर्शन कर, शीश झुका कर, मत्था टेक कर सम्मान देने की प्रारंभ से ही परंपरा है।