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संगत को गुरबाणी के अर्थ (व्याख्या) समझाने का कार्यक्रम करवाएं गुरुद्वारा कमेटियां।

जमशेदपुर: अक्सर देखा गया है कि गुरुद्वारा कमेटियों द्वारा सिख प्रचारकों को बुलाया जाता है। और संगत को बोला जाता है कि ये सिख प्रचारक हैं। ये सिखिज्म की बात करेंगे। लेकिन देखा गया है कि कुछ प्रचारकों को छोड़कर बाकी प्रचारक इधर उधर की बातें करते हुए नजर आते हैं। ये लोग वो बातें करते हैं। जो किसी भी प्रकार से सिख फलसफा में फीट नहीं बैठता। कुछ प्रचारक गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पदाधिकारियों की तारीफ करते हुए नजर आते हैं। जैसे फलाने सिंह बड़ा अच्छा काम कर रहे हैं। फलाने सिंह बड़े प्यार वाले हैं। ऐसा लगता है कि वो सिख प्रचारक न होकर प्रबंधक कमेटी के प्रवक्ता हैं।

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आजकल के ज्यादातर प्रचारक दुनियावी बातें ज्यादा करते हैं। गुरु की बातें कम करते हैं। इसलिए संगत पर असर नहीं देखा जाता। गुरुद्वारा कमेटियां हजारों रुपये खर्च कर प्रचारक को बुलाते हैं। और कथा विचार का आयोजन करवाते हैं। और प्रचारक अपनी बातों के मकड़जाल में संगत को उलझा देते हैं। और संगत से वही बात करते हैं। जो संगत को पता है। इसलिए कथा विचार कार्यक्रम में संगत का रुझान कम हो गया है। क्योंकि आजकल के कथा वाचक कुछ नया नहीं बताते। इसीलिए ऐसे कार्यक्रम में संगत नहीं होती है।

इस विषय पर समाजसेवी सरदार गुरदीप सिंह सलुजा ने संगत के बीच एक सर्वे किया तो संगत ने भी गुरुद्वारा कमेटियों को सुझाव देते हुए कहा कि गुरुद्वारा में गुरबाणी की लड़ीवार व्याख्या (अर्थ) करवाने की व्यवस्था करें। हालांकि यह एक मुश्किल काम हैं क्योंकि सब कथा वाचक गुरबाणी का अर्थ नहीं कर पायेंगे। फिर भी कोई ऐसा कुशल और गुरबाणी की पढ़ाई कर चुके ग्रंथी से सम्पर्क करके गुरुद्वारा साहिब में गुरबाणी की व्याख्या करने का प्रबंध करवाएं। ताकि संगत को गुरबाणी के प्रति उत्सुकता जागे।
जैसे उदाहरण के लिए एक सिख जपुजी साहिब का पाठ तो करता है। लेकिन उसके अर्थ नहीं मालूम होते। और यदि जपुजी साहिब का अर्थ सिखों को पता चल जाए। तो उन्हें पाठ करने में और रुचि बढ़ेगी। सच्चाई तो ये है कि लोग जपुजी साहिब के पावन पाठ का रट्टा ही मार रहे हैं।

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एक सर्वे के अनुसार जपुजी साहिब के पाठ में “सोचे सोच न होवई, जे सोच्ची लख वार” का लोगों ने “सोचे सोच” का अर्थ “सोच- विचार” से किया। जबकि इसका अर्थ कुछ और ही है।
उसी प्रकार से “पाताला पाताल लख आगासा आगास, ओड़क ओड़क भाल थके वेद कहिन ईक वात” आदि लाईनों का अर्थ लोगों को पता नहीं है। लेकिन श्रद्धा वश लोग पाठ कर लेते हैं।

यदि गुरबाणी की इन सब लाइनों का अर्थ संगत को बताया जाए तो संगत सीधे गुरु नानक देव जी से जुड़ जाएगी। और सिख को श्री गुरु नानक देव जी द्वारा कही गई अनमोल बातें सरलता से समझ आ जाएगी। इसके लिए गुरुद्वारा कमेटियों को गुरबाणी व्याख्या (अर्थ) करने वाले सिख प्रचारक का प्रबंध करना चाहिए। ताकि संगत को गुरबाणी के प्रति उत्सुकता जागे। यदि कमेटियां संगत के पैसे का सही सदुपयोग करना चाहती हैं तो ऐसे प्रचारक की व्यवस्था करें। जो इधर उधर की बात ना करके गुरबाणी व्याख्या करें। और संगत को गुरु की बात बताएं।

गुरुद्वारा साहिब में गुरबाणी की व्याख्या सप्ताह में एक बार कम से कम 1 घंटे के लिए शाम के दीवान में अवश्य करवाना चाहिए। और हो सके तो लड़ीवार गुरु साखी भी संगत को सुनाया जाए। ताकि संगत को सही इतिहास की जानकारी हो सके।

NOTE-इस विषय पर आम संगत भी अपने विचार 8229047688 व्हाट्सएप नंबर पर भेज सकते हैं।

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