sawan special- सावन के पवित्र माह का शिवभक्तों के लिए खास प्रसंग। “कर्म का फल”।learn more about the sawan spl context.
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महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था. अपनी भुजाओं में दबाकर भीम को मारने की धृतराष्ट्र की कोशिश भगवान श्रीकृष्ण ने नाकाम कर दी. धृतराष्ट्र लज्जित थे. विदुरजी ने उन्हें समझाया कि श्रीकृष्ण भगवान हैं. जीवन के अंतिम क्षणों में आप उनसे ज्ञान लीजिए.धृतराष्ट्र ने श्रीकृष्ण से पूछा- आप भगवान हैं, आप बताइए कि मेरे साथ इतना अन्याय क्यों हुआ. मैं अंधा पैदा हुआ, मेरे सौ पुत्र मारे गए. अब मेरे कुल का कोई नामलेवा तक नहीं रह गया. भगवन मैंने ऐसा कौन सा पाप किया हैजिसकी सजा मिल रही है.
भगवान श्रीकृष्ण ने बताना शुरू किया- महाराज धृतराष्ट्र पिछले जन्म में आप एक राजा थे. आपके राज्य में एक परम तपस्वी ब्राह्मण रहते थे. ब्राह्मण के पास हंसों का एक जोड़ा था. जिसके चार बच्चे थे.*ब्राह्मण को तीर्थयात्रा पर जाना था लेकिन हंसों की देखरेख की चिंता के कारण वह जा नहीं पा रहे थे. ब्राह्मण ने अपनी चिंता एक साधु को बताई. साधु ने कहा- तीर्थयात्रा में हंसों को बाधक बताकर तुम पक्षियों के साथ अन्याय करते हुए उनका अगला जन्म खराब कर रहे हो.
ब्राह्मण चिंतित हो गए. उन्होंने साधु से पूछा- भला मैं अपने प्रिय हंसों का अगला जन्म क्यों खराब करना चाहूंगा. साधु ने बताया कि प्रभुकार्य में बाधक बनने का दोष हंसों पर लगने के कारण उनका अगला जन्म खराब हो रहा है.
ब्राह्मण को बात समझ में आ गई. उसने साधु से रास्ता बताने की विनती की. साधु ने कहा- राजा प्रजापालक होता है. तुम और तुम्हारे हंस दोनों उसकी प्रजा हो. हंसों को राजा के संरक्षण में रखकर तुम तीर्थयात्रा पर चले जाओ।
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र से बात जारी रखी- महाराज ब्राह्मण ने अपने हंसों का जोड़ा और उसके बच्चे आपके पास रख छोड़े और यात्रा पर चले. आपको एक दिन मांस खाने की इच्छा हुई. आपने सोचा कि आपने सभी जीवों का मांस खाया तो है पर हंस का मांस नहीं खाया.
आपने हंस के दो बच्चे भूनकर खा लिए. आपको हंस के मांस का स्वाद लग गया. हंस के एक-एक कर सौ बच्चे हुए और आप सबको खाते गए. आखिर में हंसों के जोड़े मर गए.
कई साल बाद तीर्थयात्रा से जब वह ब्राह्मण लौटा और अपने हंसों के बारे में पूछा तो आपने कह दिया कि हंस बीमार हो गए थे. आपने उनका ईलाज कराया लेकिन वे बचे नहीं.
ब्राह्मण ने आपकी बात पर आंख मूंद कर भरोसा किया और आपने उस अंध भरोसे का फायदा उठा लिया. इसीलिए आपके सौ पुत्र हुए. आपने तीर्थयात्रा पर गए उस व्यक्ति के साथ विश्वासघात किया जिसने आप पर अंधविश्वास किया था. आपने प्रजा की धरोहर में डाका डालकर राजधर्म भी नहीं निभाया.
हंस के सौ बच्चे भूनकर खाने के पाप से आपके सौ पुत्र हुए. आप पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले से झूठ बोलने और राजधर्म का पालन नहीं करने के कारण आप अंधे और राजकाज में विफल व्यक्ति हो गए.
श्रीकृष्ण ने कहा- सबसे बड़ा छल होता है विश्वासघात. आप उसी पाप का फल भोग रहे हैं.
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