miracle-शहीद बाबा दीप सिंह गुरुद्वारे में हुआ चमत्कार। कैंसर का रोगी हुआ कैंसर मुक्त।know more about it.
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miracle-शहीद बाबा दीप सिंह गुरुद्वारे में हुआ चमत्कार। कैंसर का रोगी हुआ कैंसर मुक्त।
कहा जाता है कि यदि अरदास ( प्रार्थना) सच्चे मन से किया गया हो तो अवश्य पूरी होती है।ऐसा ही एक वाक्या जमशेदपुर के सीतारामडेरा स्थित गुरुद्वारा साहिब शहीद बाबा दीप सिंह जी के गुरुद्वारा साहिब में हुई।जहां कैंसर जैसी बीमारी से एक श्रद्धालु ठीक हुआ।
miracle-ये समाचार आप गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सोनारी, दुपट्टा सागर बिस्टुपुर, नागी मोबाइल कम्यूनिकेशन्स के सहायता से प्राप्त कर रहे हैं।

बताया जाता है कि मुकुंद कुमार उलीडीह मानगो निवासी जो की कोरोना काल में कैंसर से पीड़ित थे। और जिन्दगी से हार मान चुके थे।काफी इलाज करवाने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।इस बीच किसी ने उन्हें सीताराम डेरा स्थित शहीद बाबा दीप सिंह जी के स्थान के बारे मे बताया।और मुकुंद कुमार जी ने गुरुद्वारा साहिब आकर सच्चे दिल से अरदास करते हुए गुरु चरणों मे माथा टेक कर अपने परेशानी से निजात दिलाने की अरदास की। और वाहेगुरु जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और बाबा जी की किरपा हुई और मुकुन्द कुमार जी कैंसरमुक्त हो गये। वह इसे शहीद बाबा दीप सिंह जी का ही चमत्कार मानते हैं।मुकुंद कुमार जी कैंसर मुक्त होने उपरान्त आज दिनांक 10 मार्च 2024 रविवार को गुरुद्वारा साहिब शहीद बाबा दीप सिंह सीता राम डेरा में साध संगत में चौपहरे के लंगर की सेवा करवाई और बाबा दीप सिंह जी का लख लख शुकराना किया।
इस मौके पर प्रधान सरदार हरजिंदर सिंह ने गुरुकिरपा होने का शुकराना करते हुए मुकुंद कुमार जी को साध संगत के बीच सम्मानित किया ।

miracle-ਇਹ ਖਬਰ ਤੁਸੀਂ ਗੁਰੂਦਵਾਰਾ ਪ੍ਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ ਸੋਨਾਰੀ, ਦੁਪਟਾ ਸਾਗਰ ਬਿਸਟੁਪੁਰ ਨਾਗੀ ਮੋਬਾਈਲ ਕਮਯੁਨੀਕੇਸੰਸ ਦੇ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਪਾ੍ਪਤ ਕਰ ਰਹੇ ਹੋ ਜੀ।
सिखों के योद्धा बाबा दीप सिंह जी कौन थे, क्या है इनका इतिहास
बाबा दीप सिंह सिखों के ऐसे योद्धा थे जिनका नाम आज भी शूरवीरों की लिस्ट में टॉप पर आता है. बाबा दीप सिंह के बहादुरी के किस्से सुनकर आप भी उनके सामने नतमस्तक हो जाएंगे.
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बाबा दीप सिंह का जन्म सन् 1682 में अमृतसर के गांव बहु पिंड में हुआ था. 12 साल की उम्र में बाबा दीप सिह जी अपने माता-पिता के साथ आनंदपुर साहिब गए. वहां बाबा दीप सिंह की मुलाकात सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी से हुई. बाबा दीप सिंह जी ने वहां रुक कर सेवा की और गुरु गोविंद सिंह जी के कहने पर उनके माता-पिता उनको वहां छोड़ कर चले गए.
आनंदपुर साहिब में बाबा दीप सिंह ने अपने जीवन की शिक्षा प्राप्त की भाषाएं सीखी, घुड़सवारी सीखी, शिकार और हथियारों की जानकारी ली. 18 साल की उम्र में उनको अमृत छका और सिखों को सुरक्षित रखने की शपथ ली.
एक बार युद्ध के चलते सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब की जिम्मेदारी बाबा दीप सिंह को सौंपी. बाबा दीप सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब की पांच प्रतिलिपिया बनाई और ये प्रतिलिपिया अकाल तख्त पटना साहिब, श्री तख्त हजूर साहिब,श्री तख्त आनंदपुर साहिब भेज दी गई.
बाबा दीप सिंह ने सिख धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश कुर्बान कर दिया. मुगल शासकों से लड़ते वक्त उनका शीश उनके धड़ से अलग हो गया और उन्हें सिख धर्म की रक्षा याद आई और उनका शरीर खड़ा हो गया, उन्होंने खुद अपना सिर उठाकर श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर की परिक्रमा की और वहीं अपने प्राण त्याग दिए. उनकी ये कुर्बानी आज भी सिख धर्म के लिए एक मिसाल है.