idiom-सीधे का मुँह कुत्ता चाटे…,know more about this Idioms.
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सीधे का मुँह कुत्ता चाटे…
“ भाभी भाभी कहाँ हो आप … अरे जल्दी से बाहर आओ ना ।”नैना अपनी भाभी राशि को इधर-उधर खोजते हुए बोले जा रही थी
“क्या हुआ नैना आ रही हूँ.. ब्याह का घर है ना बहुत काम होते हैं…अब यहाँ रहती हूँ तो सब कुछ देखना भी तो मुझे ही होगा ।” कहती हुई राशि स्टोर में कुछ सामान खोजने में व्यस्त थी
“ ये क्या बात हुई भाभी… बड़ी भाभी के बेटे की शादी वो तो मजे से अपने कपड़ों की मैचिंग ज्वैलरी सेट करने में व्यस्त है उसके बाद संगीत के लिए रिहर्सल भी कर रही है और एक आप बस काम काम काम ।”नैना राशि का हाथ पकड़कर डाँस की प्रैक्टिस करवाने ले जाने लगी
“ नैना… बाद में कर लूँगी ना प्रैक्टिस पहले काम करने देती…. माँ और भाभी फिर मुझसे ही सवाल करेगी ।” राशि हाथ छुड़ाकर जाने की कोशिश करने लगी
“ बस भाभी जब से आप आई हो देख रही हूँ माँ और बड़ी भाभी दोनों आपके उपर काम की ज़िम्मेदारी सौंप कर मजे करने लगी फिर बड़े भैया तबादले के बाद बाहर क्या गए बड़ी भाभी भी खुद को मेहमान समझने लगी है…थोड़ा काम उन्हें भी करने बोलों भाभी नहीं तो ज़िन्दगी भर काम ही करती रहोगी ना कहना सीखो भाभी ….वो कहते हैं ना सीधे का मुँह कुत्ता चाटे…सब आपसे फ़ायदा लेते रहेंगे पर आपको ना तो कोई समझेगा ना आपकी मदद करेगा ।” नैना राशि का हाथ ज़बरदस्ती पकड़कर वहाँ ले गई जहाँ सब डाँस की प्रैक्टिस कर रहे थे
“ अरे राशि वो सब सामान स्टोर से निकाल दिया?” राशि को देखते ही उसकी जेठानी ने पूछा
“ वो ऽऽ वोऽऽऽ।” राशि कुछ कहती उससे पहले नैना ने कहा
“ बड़ी भाभी आपकी प्रैक्टिस तो हो गई है ना… आप देख लो सामान… अब आपके बेटे की शादी में इकलौती चाची का डाँस अच्छा नहीं होगा तो सब बुराई करेंगे इसलिए इनको ज़बरदस्ती पकड़कर ले आई हूँ फिर कोरियोग्राफ़र भी तो चले जाएँगे ।”
“ हाँ ये तो सही किया..अरे भई लड़के की चाची का डाँस ए वन होना चाहिए।” वहाँ एकत्रित रिश्तेदारों ने समवेत कहा
“ बड़ी बहू जाओ तुम ही सामान निकाल कर रख लो… तुमको भी तो पता ही है कहाँ क्या रखा है…तब तक छोटी बहू भी प्रैक्टिस कर लेगी।” कुर्सी पर बैठी सास ने कहा
नैना राशि को देख आँख मारते हुए बोली,” देखा ऐसे करना चाहिए ।”
बाद में राशि को नैना ने कहा ,” भाभी मैं जब अपने ससुराल गई ना तो अकेले मेरे से उतना काम ही नहीं होता था फिर मेरी सास और ननद मिल कर करने लगे ..अब तो देवरानी भी आ गई है… सच कहूँ सब मिलकर काम करते हैं तो घंटों का काम समझो मिनटों में हो जाता है…तो बस अब से आप भी वही करना..अब माँ से क्या ही बोलूँ ये सोच कर आपको समझा रही हूँ ।”
राशि को भी लग रहा था जो भी काम सब उससे कहते वो सिर झुकाए करती चली जा रही थी शायद इसलिए ही सब उससे करवाने भी लगे थे ….”अब मैं भी ना कर दिया करूँगी ऐसा भी क्या जो वो नहीं कर सकते हैं ।”
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हिमानी ने ,अपनी जमा राशि से , आठ हज़ार गार्गी को दे दिये।
काफ़ी समय बीत जाने पर भी गार्गी ने पैसे नहीं लौटाये।
हिमानी ने अपने ही पैसे बहुत संकोच सहित मांगे तो गार्गी ने कहा, ” मैं कहीं भागे जा रहीं हूँ क्या? लौटा दूंगी। तू मुझे दो हज़ार और दे दे एक साथ दस हज़ार वापस कर दूंगी।
हिमानी ने कहा, ” दो हज़ार तो नहीं लेकिन एक हज़ार दे देती हूँ। “
गार्गी ने वो भी नहीं लौटाये।
हिमानी के वापस मांगने पर गार्गी ने कहा, ” दो हज़ार मांगे थे और तूने केवल एक हज़ार दिये, अब जब जल्दी से एक हज़ार और देगी तब एक साथ दस हज़ार वापस करूंगी। “
परेशान हिमानी समझ ही नहीं पा रही थी कि उधार गार्गी ने लिया है या स्वयं हिमानी ने लिया है।
तब हिमानी को उसके पति ने समझाया, ” ‘ सीधे का मुंह कुत्ता चाटे’ अथार्त सीधे लोगों का सब लाभ उठाते हैं। सामाजिक होना चाहिए लेकिन ऐसे चालाक और धोखेबाज़ लोगों से सावधान रहना चाहिए। “
हिमानी समझ गयी थी। अब उसने गार्गी से दूरी बना ली।
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मनस्वी गांव की चुलबुली सी लड़की थी। पिता चाहते थे कि बेटी का भविष्य सुरक्षित रहे, इसलिए उन्होंने उसका विवाह शहर के एक नामी ग्रामी परिवार में कर दिया। वह भी इस बात से बड़ी खुश थी कि अब वह शहर में बड़े ठाठ बाट से रहेगी। वह परिवार में सबसे छोटी बहू थी। उसकी तीनों जेठानी बड़े शहरों से थी। वह सबसे छोटी थी इसलिए सभी का कहना मानतीं।घर में यूं तो नौकर चाकर थे। परंतु नौकर जब भी छुट्टी पर जाते साफ सफाई का सारा काम उसी के जिम्मे आता । भोलेपन में वह खुशी खुशी सारा दिन लगी रहती। उसकी जेठानिया अक्सर उसका मजाक उड़ाया करती। मनस्वी इतनी भोली और सरल थी कि वह उनकी व्यंग पूर्ण हंसी को कभी समझ ही न पाती थी बल्कि खुद भी उनके साथ खिलखिला कर हॅंसती। घर में हवन-यज्ञ या अन्य कोई भी आयोजन होने पर साफ सफाई के कार्यों में अक्सर उसे ही लगाया जाता। एक बार ससुर जी ने घर में यज्ञ का आयोजन करवाया उसमें सभी को भोज निमंत्रण दिया गया । यज्ञ संपन्न होने के बाद घर के बाहर बहुत सारे झूठे पत्तल इकट्ठा हो गये अब समस्या थी कि इन पतलो को उठाकर कौन फेंके?
बड़ी जेठानी ने कहा ,मनस्वी हम रसोई संभाल रहे हैं तुम बाहर की व्यवस्था देख लो”।
मनस्वी ने खुशी खुशी सारे झूठे पत्तल उठाकर कूड़ेदान में डाल दिये
जैसे ही वह घर के भीतर आईं तीनों जेठानिया मनस्वी का मज़ाक़ बनाकर आपस में हॅंस रही थी, मनस्वी तो गांव की गंवार है उसे यही काम आता है हम तो बड़े घर की बेटियाॅं है हमने कभी साफ़ सफाई नहीं की”।
जिठानियो के ये शब्द मनस्वी के हृदय में शूल की भांति चुभ रहें थे।
उसने कभी भी उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया था। उसने सदा उनका सम्मान किया था। परंतु उसके प्रति उनकी ऐसी भावना देखकर वह हतप्रद थी। परंतु उसी दिन से उसने बाहर की सफाई के साथ-साथ समाज की सफाई और लोगों की दूषित मानसिकता की सफाई की बात भी ठान ली थी।
मनस्वी के निश्छल हृदय से कविता और कहानी फूट पड़ी। अब गांव की गंवार एक प्रसिद्ध लेखिका और कवयित्री बनकर उभ रही थी।
मनस्वी की प्रसिद्धी धीरे धीरे चारों तरफ होने लगी
कई मंचों ने उसे सम्मानित किया ।उसकी प्रसिद्धि देखकर बड़े शहरों की जेठानियों की बोलती बंद थी।
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