Historical incident-दिल्ली फतेह दिवस पर विशेष।know more about this famous day
Historical incident know history about dilli fateh diwas
सिख योद्धाओं की गाथा को बयान करेगा दिल्ली का लाल किला।

दिल्ली फतेह दिवस पर विशेष।
जाने इसका इतिहास।
इस वर्ष 6 अप्रैल से 9 अप्रैल तक लाल किले पर दिल्ली फतेह दिवस का आयोजन किया जा रहा है, इसका इतिहास सिखों से जुड़ा है। वर्ष 1783 में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को सिख सेना ने पराजित कर लाल किले पर कब्जा किया था। इस दौरान मुगल बादशाह शाह आलम ने सिखों के सामने संधि के लिए प्रस्ताव रखा था।
उन दिनों दिल्ली पर मुगलों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। उनके आत्याचार पर जीत के लिए हर वर्ष लाल किले पर दिल्ली फतेह दिवस मनाया जाता है। इस साल ये आयोजन 6 अप्रैल से 9 अप्रैल तक मनाया जाएगा। इसका आयोजन सन् 1783 में हुई घटना की याद में मनाया जाता है परन्तु करोना संक्रमण के चलते पिछले 3 वर्षों से इस आयोजन के लिए सरकार द्वारा अनुमति नहीं मिल रही थी। किन्तु इस बार दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा के हरमीत सिंह कालका ने बताया
इस बार कार्यक्रम में पंजाब के लोगों को भी जोड़ा गया है जिसमें पंजाब से एक नगर किर्तन निकलेगा और ये नगर किर्तन 7 अप्रैल को दिल्ली पहुंचेगा। कार्यक्रम में गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित शस्त्रों का प्रदर्शन किया जायेगा। खालसा रैली का विशेष रूप से आयोजन होगा और लोगों को सिख इतिहास के बारे में भी बताया जायेगा।
कमेटी ने शिरोमणि अकाली बुढ्ढा दल पांचवा तख्त के प्रमुख बाबा बलवीर सिंह के साथ मिटींग करने के उपरांत कार्यक्रम की रुपरेखा तय की। संयोग की बात है कि इस साल महान सिख योद्धा बाबा जस्सा सिंह रामगढ़िया जी का 300 साला एवं जत्थेदार फुला सिंह की 200 साला जयंती भी है इसलिए इस साल का दिल्ली फतेह दिवस इन्ही दोनो योद्धाओं को समर्पित रहेगा।
इतिहास:-
डीयू के खालसा कालेज के प्रिसिंपल डाक्टर जसबिंदर सिंह के मुताबिक 11 मार्च सन् 1783 को सिख जरनैल बाबा जस्सा सिंह आहुवालिया, बाबा जस्सा सिंह रामगढ़िया, बाबा बघेल सिंह के अगुवाई में 30 हजार सिख लड़ाकों की फौज ने दिल्ली में मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ मोर्चा खोला और युद्ध करने पहुंचे थे। मुगलों को सबक सिखाने के लिए सिख योद्धा बाबा बघेल सिंह अपनी टुकड़ी के साथ दिल्ली पंहुचे, और इस दौरान सिखों ने लाल किले के दिवाने आम पर कब्जा कर लिया था, जहाँ पर उस वक्त के मुगल शासक शाह आलम द्वितीय बैठते थे। उस वक्त सिखों के भय से शाह आलम द्वितीय को सिख योद्धाओं से समझौता करना पड़ा था।