coromandal express derail-बालासोर ट्रेन हादसा- “जाको राखे सांईया, मार सके ना कोय”fate of father and daughter know more about
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बालासोर ट्रेन हादसा- “जाको राखे सांईया, मार सके ना कोय”
उड़ीसा के बालासोर में कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के डीरेल होने से तीन ट्रेनों के आपस में टकरा जाने की दुर्घटना में एक पिता और उनकी 8 साल की बच्ची ने हादसे से ठीक पहले कोच बदला था। जिसकी वजह से उनकी जान बच गयी।
“जाको राखे सांईया, मार सके ना कोय” कहावत कैसे चरितार्थ हुई
दरअसल एक 8 साल की बच्ची अपने पिता के साथ उस कोच में बैठी थी जो पूरी तरह से दुर्घटनाग्रस्त हो गया। और उस कोच में सफर कर रहे ज्यादातर लोगों की मौत हो गई। हालांकि बाप- बेटी ने हादसे के ठीक पहले किसी अन्य मुसाफिर से सीटों की अदला- बदली की थी इस कारण से उनकी जान बच गयी।
कौन थे भाग्यशाली बाप-बेटी ?
ये दोनों बाप-बेटी खड़गपुर से रेलवे स्टेशन से ट्रेन में सवार हुए थे। जिन्हे कटक में उतरना था। जहाँ 3 जून को एक डाक्टर के साथ अपॉइंटमेंट था। पिता (दबे) ने बताया कि उनके पास थर्ड एसी के कोच में सफर करने की टिकट थी लेकिन बच्ची खिड़की वाली सीट पर बैठने की जिद्द कर रही थी। उसकी जिद्द को देखकर मैंने टीसी से बात की किंतु टीसी ने कहा कि अभी विंडो सीट उपलब्ध नहीं है, हाँ यदि आप चाहें तो किसी अन्य सवारी से अनुरोध करके सीट की अदला- बदली कर सकते हैं।
उधर सीट बदली और इधर कुछ मिनटों बाद हो गया हादसा।
टीसी के सुझाव पर दबे ने अपनी बेटी की जिद्द पूरी करने के लिए यात्रियों से सीट बदलने की गुजारिश करने लगा। और अपने कोच से दो कोच छोड़कर तीसरे कोच के दो यात्री उनकी सीट पर बैठने के लिए तैयार हो गये।
श्री दबे अपनी दो सीट छोड़कर इनके सीट पर बैठ गए और ये दोनों यात्री इन बाप-बेटी की सीट पर बैठने चले गए। इस सबके मात्र कुछ मिनटों के बाद ट्रेन हादसे की शिकार हो गई जिसमें 300 यात्री मारे गए।
क्या हुआ उन दोनों यात्रियों का जिन्होंने सीट बदली थी?
आप सबके मन में ये सवाल जरूर होगा कि उन दोनों यात्रियों का क्या हुआ। तो आपको बता दें कि उन दोनों यात्रियों का भी ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। हालांकि उनका कोच बुरी तरह से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उस कोच के ज्यादातर यात्रियों की मौत हो गयी।
इधर दोनों पिता- पुत्री सुरक्षित हैं।
abp