Breaking-गुरुवाणी शबद किर्तन और हनुमान चालीसा एक ही आंगन में।

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शबद किर्तन एवं हनुमान चालीसा एक साथ एक ही आंगन में!
वाराणसी: आपसी भाईचारा और आपसी सौहार्द का मिसाल कायम करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 42 वर्षों से विवादित स्थल पर एक बड़ा फैसला किया। जिसमें हिन्दू सिख भाईचारे को बल मिलेगा।
ये समाचार आप गुरु रामदास सेवा दल सोनारी,गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी साक्ची,गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी नामदा बस्ती,गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सरजामदा,गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सीतारामडेरा,गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी टिनप्लेट, गौरीशंकर रोड स्त्री सत्संग सभा प्रधान बीबी इंद्रजीत कौर,दुपट्टा सागर बिस्टुपुर के सौजन्य से प्राप्त कर रहे हैं।

सिखों के नौवें गुरु श्री गुरुतेग बहादुर जी के तपस्थली पर 42 सालों बाद जल्द निर्माण कार्य आरंभ किया जाएगा। और उस पावन भूमि पर जल्द गुरुद्वारा साहिब का संगत द्वारा निर्माण करवाया जाएगा। जहां गुरुबाणी शबद किर्तन एवं हनुमान चालीसा एक साथ एक ही आंगन में पढ़ा जाएगा। जो हिन्दू सिख सौहार्द का उदाहरण बनेगा।
इस संबंध में जगत सिंह शोध समिति के संरक्षक प्रदीप नारायण सिंह ने बताया कि ब्रिटिश हकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फुंकने वाले शहीद बाबू जगत सिंह ने जगत गंज इलाके मे गुरु तेगबहादुर महाराज जी की चरणस्पर्श भूमि सिख समुदाय को गुरुद्वारा बनाने के लिए दी थी। 1984 सिख दंगों के दौरान कुछ लोगों ने गुरुद्वारा के जमीन पर हनुमान प्रतिमा स्थापित कर दी थी। स्वामित्व के विवाद के चलते उस समय प्रशासन ने इस पर ताला लगा दिया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के पहल पर मामले के हल करने के लिए गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी एवं बड़ा हनुमान मंदिर प्रबंधक समिति के पदाधिकारियों के बीच कई दौर की बात चीत हो चुकी है।
समझौता के अनुसार 3500 वर्ग फीट के परिसर में एक ओर भव्य गुरुद्वारा होगा तो दूसरी ओर रामभक्त हनुमान जी का भव्य आभा। इस समझौते के बाद 42 वर्षों से बंद ताला खोल कर चाबी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को सौंप दी गई है।

क्या था विवाद?
वाराणसी के जगतगंज इलाके में एक ही प्रांगण में स्थित हैं हनुमान जी का मंदिर और गुरु तेग बहादुर जी का चरण स्पर्श स्थल. करीब 42 साल पहले, कुछ अवांछनीय तत्वों के कारण इस स्थल पर तनाव पैदा हुआ और दोनों धार्मिक स्थलों को ताले में बंद कर दिया गया. इस विवाद ने इतना तूल पकड़ा कि मामला कोर्ट तक पहुंच गया और चार दशकों से अधिक समय तक न्यायिक प्रक्रिया में उलझा रहा. नतीजा यह रहा कि न मंदिर में हनुमान चालीसा की गूंज सुनाई दी और न ही गुरुद्वारे में शबद-कीर्तन हुआ. धीरे-धीरे दोनों स्थल खंडहर में तब्दील हो गए और आस्था की जगह वीरानी ने ले ली.
कैसे सुलझा विवाद?
इस जटिल मुद्दे को सुलझाने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने बाबू जगत सिंह के परिवार के सहयोग से दोनों पक्षों के बीच सीधी वार्ता करवाई. इस बातचीत में यह सहमति बनी कि दोनों धार्मिक स्थल एक-दूसरे के अस्तित्व का सम्मान करते हुए, एक ही प्रांगण में रहेंगे. मुख्यमंत्री के निर्देश पर जिला प्रशासन ने दोनों समुदायों के साथ बैठकें कीं और आपसी सहमति के आधार पर मंदिर परिसर का ताला खोला गया. अब यह स्थान एक सांप्रदायिक सौहार्द और समरसता का प्रतीक बन गया है.
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